निशिकांत दुबे के बयान पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ने दी नसीहत, बोले- संविधान सर्वोच्च, कोई कान

निशिकांत दुबे के बयान पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ने दी नसीहत, बोले- संविधान सर्वोच्च, कोई कान

Supreme Courtroom Former Choose: वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को लेकर देश में एक नई संवैधानिक बहस छिड़ गई है. सुप्रीम कोर्ट में इस कानून की वैधता को चुनौती दी गई है और इस पर सुनवाई के दौरान बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को लेकर विवादित बयान दे डाला. दुबे ने कहा कि “देश में धार्मिक गृहयुद्ध भड़काने के लिए सुप्रीम कोर्ट जिम्मेदार है.”

इस पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अशोक कुमार गांगुली ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “कोई भी कानून से ऊपर नहीं है. संविधान की मूल भावना की रक्षा करना सुप्रीम कोर्ट का दायित्व है.”

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ने कहा, “हमारा देश धर्मनिरपेक्ष है. संविधान की मूल भावना की रक्षा करना सुप्रीम कोर्ट का काम है, इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ एक्ट को लेकर सरकार के सामने कुछ सवाल रखे हैं. इसके बाद सरकार बैकफुट पर आ गई और उसने कहा कि वह एक्ट की कुछ धाराओं को लागू नहीं करेगी. संविधान के अनुच्छेद 53 के अनुसार राष्ट्रपति को संविधान के अनुसार काम करना चाहिए, अगर ऐसा नहीं है तो सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को निर्देश दे सकता है. इसमें कुछ भी गलत नहीं है. इससे लोकतंत्र मजबूत होता है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को यह समझने की जरूरत है कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है.”

बीजेपी नेता निशिकांत दुबे ने क्या कहा?
बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि अगर अदालत ही कानून बनाएगी, तो संसद को बंद कर देना चाहिए. उन्होंने कहा, “भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना इस देश में हो रहे सभी गृहयुद्धों के लिए जिम्मेदार हैं.” उन्होंने आर्टिकल 141 और अनुच्छेद 368 का हवाला देते हुए तर्क दिया कि अनुच्छेद 368 संसद को कानून बनाने का अधिकार देता है. आर्टिकल 141 के तहत सुप्रीम कोर्ट के निर्णय सभी अदालतों पर बाध्यकारी होते हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि सुप्रीम कोर्ट कानून बना सकती है.

नियुक्तियों पर भी उठाया सवाल
बीजेपी सांसद ने सवाल किया, “जब राम मंदिर, ज्ञानवापी या कृष्ण जन्मभूमि की बात आती है तो सुप्रीम कोर्ट कागज मांगता है, लेकिन वक्फ संपत्तियों के लिए ऐसा नहीं करता?” दुबे ने यह भी पूछा कि सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को कैसे निर्देश दे सकती है कि विधेयकों पर कितने समय में निर्णय लिया जाए. 

वक्फ अधिनियम को लेकर सुप्रीम कोर्ट और संसद के बीच चल रही कानूनी और नैतिक बहस ने भारत के लोकतंत्र और संस्थाओं की भूमिकाओं को एक बार फिर से बहस के केंद्र में ला दिया है. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ने साफ कहा है कि संविधान सर्वोच्च है और कोई भी व्यक्ति, संस्था या पद, चाहे वह कितना भी ऊंचा क्यों न हो, कानून से ऊपर नहीं हो सकता.

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